मुमकिन नहीं है इस बार ‘मां’ और ‘मायके’ से उनकी बेटियों का मिलन

सिंगोरी न्यूजः ससुराल से आकर यहां बेटियां अपनी मांओं से मिलती हैं, परिजनों से मिलती हैं। यहीं वह अपने सुख और दुख के हर पहलू को खुले मन से किसी के सामने बखान करती है। यहां एक अद्भुत मिलन होता है। यहां की समृद्ध परंपराएं नई पीढ़ी को भी गौरव का अवसर देती हैं। नई पीढ़ी यहां उल्लास से खिलखिलाती है। कहीं पकवानों की महक उठती है तो कहीं रंगबिरंगी चूड़ियां, झुमकी पर बालमन आकर्षित होता है। चरखी मंे बैठे बच्चों का हौसला मानो आसमान को छूने को लालायित होता है। हम यहां बात कर रहे हैं खिर्सू के मेले की। खिर्सू का मेला यानी कठ्ठबद्दी का मेला। जो इस बार कोरोना की भेंट चढ़ गया है।

खिर्सू में इस तरह दिखता है प्राचीन परंपराओं का सामथ्र्य


कठ्ठबद्दी मेले का स्वरूप अपने आप में अनूठा है। इसमें लकड़ी से मानवकाया का रूप तैयार किया जाता है। पूजा अर्चना के बाद उसे गांव के ऊपर तीन सौ मीटर की ऊंचाई से रस्सी के सहारे खिसकाया जाता है। यह मेला एक वर्ष ग्वाड़ तो दूसरे वर्ष कोठगी गांव में होता है। यह रोमांच कुछ पलों का होता है, लेकिन इन पलों को देखने के लिए दर्शकों की उत्सुकता में लगातार इजाफा हो रहा है। ग्रामीणों के मुताबिक क्षेत्र को बुरी नजर से बचाने व खुशहाली के लिए यह मेला होता है।
इस बार यह आयोजन कोठगी में किया जाना था। लेकिन समिति ने यह निर्णय लिया है सोशल डिसटेंसिंग का पूरा ध्यान रखते हुए आदेशों का अनुपालन होगा। ग्वाड़ निवासी सामाजिक कार्यकर्ता गोविंद सिंह रावत ने बताया कि मगलवार को गांव की बैठक है। जिसमें 27 अपै्रल को होने वाले पूजन कार्यक्रम को कैसे संपंन कराया जायेगा, इस पर विचार किया जायेगा। लेकिन संक्रमण की संवेदेनशीलता को देखते हुए इस बार आयोजन संभव नहीं है।

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