सिंगोरी न्यूजः वर्ष 2018 के वो 52 दिन सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत शायद कभी नहीं भुला जायेंगे। जब उनकी सरकार से 11 विधायकों ने बगावत कर उनकी सरकार को अल्पमत में ला दिया था। तब उनके सामने भी उतना ही बड़ा संकट था जितना मौजूदा समय में मध्य प्रदेश में कमलनाथ के सामने आ खड़ा हुआ है। तब हरीश रावत ने जैसे तैसे स्थितियां संभाली ओर सियासी संकट से पार पाते हुए फिर से बहुतम साबित किया। तब उनकी असहनीय पीड़ा भी जग जाहिर रही। लेकिन यह उम्मीद की जा रही है कि उनका वह तर्जुबा कांग्रेस के सामने आए सियासी संकट को टालने में संजीवनी का काम करेगा।
बता दंे कि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को पार्टी हाईकमाने एमपी के संकट टालने की भी जिम्मेदारी सौंपी है। उन्होंने भी दावा किया कि कांग्रेस की कमलनाथ सरकार का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा। फ्लोर टेस्ट में सरकार अपना बहुमत साबित कर देगी। कहा कि पार्टी के जो विधायक बेंगलुरु में मौजूद हैं उनसे भी संपर्क बना हुआ है।
एमपी में ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के बाद 22 कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार संकट में आ गई है। अचानक आए इस सियासी संकट को टालने का जिम्मा कांग्रेस आलाकमान ने राष्ट्रीय महासचिव मुकुल वासनिक के साथ उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को सौंपा है। दोनों को पार्टी पर्यवेक्षक बनकर जयपुर पहुंचे हैं।
2016 में मुख्यमंत्री रहते हुए हरीश रावत ने भी इसी तरह की स्थितियों का सामना किया है और पार्टी को इस संकट से उभारने में सफल भी हुए। 18 मार्च 2016 का वह दिन हरीश रावत कैसे भूल पायेंगे जब राज्य विधानसभा के बजट सत्र के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के नेतृत्व में नौ कांग्रेस विधायक बगावत भाजपा में शामिल हो गए थे। सरकार अल्पमत में आई तो राष्ट्रपति शासन भी लगा। तब लग रहा था कि कांग्रेस को तो लगभग गई समझो। लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश के बाद 10 मई को 2016 को हुए फ्लोर टेस्ट में हरीश रावत बहुमत साबित कर अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे।
अब मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार को बचाने की चुनौती उनके सामने है। अब देखना यह होगा कि हरीश रावत का पुराना तर्जुबा कितना काम आता है। हालांकि स्वयं रावत सरकार बचाने को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त दिख रहे हैं। उनका दावा है कि कमलनाथ विधानसभा में अपना बहुमत आसानी से साबित कर देंगे।