सिंगोरी न्यूजः कितना हौसला और हिम्मत आती है ना, कुछ इस तरह की वाकये सुनने में जिन्होंने असंभव को संभव में बदल दिया हो। हालातों से वह डरे नहीं। उन्होंने मुकाबला किया। आखिरी सांस तक लड़ते रहे और आखिरकार जीते, अपनी मंजिल तक पहुंच कर ही दम लिया। यह कहानी है महज 13 साल की ज्योति की। जिसने नामुमकिकन को मुमकिन में बदल दिया। हरियाणा के गुरूग्राम से वह 1200 किमी की दूरी साइकिल से तय कर अपने घर बिहार दरभंगा पहुंची। और वह भी अकेली नहीं साथ में अपने बीमार पिता को लेकर।
ज्योति ने बताया कि हमारे पास कुछ भी पैसे नहीं बचे थे। खाने के लिए तो पैसे नहीं थे मकान मालिक भी किराए के लिए परेशान कर रहा था। उसने भी घर से निकालने की धमकी दे दी थी। ऐसे में उनके पास दूसरा कोई चारा नहीं था। ज्योति ने निर्णय लिया कि वह बीमार पापा से कहा कि आप चलो साइकिल से। मैं ले चलूंगी। पापा नहीं मान रहे थे। तब जबरदस्ती यह कहकर करनी पड़ी कि यहां मरने से अचछा है रास्ते में कहीं मर जायेंगे। उसके बाद वह जैसे-तैसे वे मान गए।
ज्योति के पिता का नाम मोहन पासवान है। पिता को साइकिल पर बिठा कर ज्योति हरियाणा के गुरुग्राम से अपने घर दरभंगा के लिए निकली। जो एक असंभव कार्य था। जाहिर तौर पर रास्ते क्या परेशानियां हुई होंगी और क्या नहीं।ं लेकिन साहस के आगे से बौना होता चला गया। कहीं खाना मिला कहीं नहीं मिला, ऐसी स्थितियां नहीं थी कि कहीं पर खरीद कर एक पानी का गिलास भी पिया जा सके। लेकिन लेकिन ज्योति ने हिम्मत नहीं हारी।
ज्योति कहती हैं कि साइकिल के सिवा आने के लिए और कुछ नहीं था। पापा ने एक ट्रक वाले से बात की थी। लेकिन जितने पैसे वह मांग रहा था वह हमारे पास नहीं थे। फिर क्या करते। हिम्मत दिखाई और निकल पड़ी।
ज्योति अपने पापा को साइकिल पर बैठा कर 10 मई को गुरुग्राम से निकली थी। और 15 की शाम को दरभंगा अपने घर पहुंची। घर पहुंचते ही उसने भगवान का शुक्रिया अदा किया। अब उन्हें 14 दिन के लिए क्वारंटीन में रखा गया है। लेकिन ज्योति की बहादुरी से गांव वालों ने भी उसे पलकों पर बिठा दिया है।