पौड़ी: पंचायत की पॉलिटिक्स में परपंच नहीं काम बोलता है

 

पौड़ी जनपद की कुल्हाड़ जिला पंचायत सदस्य सीट पर कांग्रेस समर्थित प्रत्याशी चुनावी समर से कदम पीछे खैंच लिए हैं और इसी के साथ वहां पर भाजपा समर्थित प्रत्याशी का निर्विरोध चुने जाने का रास्ता साफ हो गया है।
यूं तो नाम वापसी और निर्विरोध चुने जाना लोकतंत्र की व्यवस्थाओं में कतई ही सामान्य प्रक्रिया है। इस बार की त्रिस्तरीय पंचायतों की कई सीटें ऐसी हैंे जिन पर निर्विरोध प्रतिनिधि तय हो गए हैं। लेकिन कुल्हाड़ जिला पंचायत सीट इसलिए चर्चा में है क्योंकि यहां पर प्रदेश के प्रमुख विपक्षी दल के समर्थित प्रत्याशी ने कदम पीछे सरकाए हैं। और भाजपा की ओर से पंचायत की राजनीति के कई रिकार्ड अपने नाम करने वाले महेंद्र राणा को आगे की रणनीति के लिए फ्री हैंड मिल गया है।
खैर छोड़िए! सियासत की जब असल बिसात बिछती है तो सब कुछ नार्मल सा लगता है। लेकिन इसके लिए वो जमीनी पकड यानी जनता का भरोसा़, मजबूत राजनैतिक प्रबंधन या यूं कहें कि कुव्वत चाहिए जो बिरलों में ही होती है।
राजनीति की इन्हीं सख्शियतों में शामिल हैं कल्जीखाल व द्वारीखाल के ब्लाक प्रमुख रहे महेंद्र राणा। वो बंदा जब पंचायतों की राजनीति में उतरा तो डंके की चोट पर उतरा। पूरी बिंदास और बेदागी के साथ। उसके उदार हृदय ने चुनाव के साथ जनता के दिलोें को भी जीता तो उसके सामने पंचायती राजनीति के कई तुरम खां पानी भर के किनारे बैठ गए।
अपवाद को छोड़ पंचायत में कोई एक बार प्रधान बन जाने के बाद दूसरी बार उठने का कोई साहस तक नहीं कर पाता है। वहीं महेंद्र राणा की बात करें तो वह पहले अपने गृह विकास क्षेत्र कल्जीखाल के ब्लाक प्रमुख बने। दूसरी बार तो उनके सामने कोई खड़ा ही नहीं हुआ। फिर कल्जीखाल में ही उनकी पत्नी बीना राणा ब्लाक प्रमुख बनी और स्वयं वह घर से बाहर निकल कर दूसरे विकास क्षेत्र द्वारीखाल प्रमुख पद पर विराजमान हुए। पहली बार के बाद हर बार एकतरफा रहा। वजह साफ है यहां राणा का काम बोलता है।
यह उनकी कार्य प्रणाली और जमीनी जुड़ाव ही प्रभाव रहा कि बाहर के लोगों ने महेंद्र राणा को बाकायदा अपने यहां प्रमुख बनने को न्यौता किया। उस दरमियान जब मेरी द्वारीखाल के कई लोगों से भीतरी और बाहरी पर बात हुई तो उन्होंने साफ कहा कि महेंद्र राणा के कार्यकाल में हमने कल्जीखाल ब्लाक के गांवों का विकास देखा है, उनका कार्य करने का तरीका देखा है। हमारा द्वारीखाल बहुत पिछड़ा है हमें महेंद्र राणा जैसे नेतृत्व की आवश्यकता है। आज के वातावरण में ग्रामीण लोगों के यह शब्द निसंदेह ही हैरान करने के साथ साथ गौरवान्वित करने वाले भी हैं।
स्पष्ट कर दूं कि ग्रामीणों की वह बातें गौरवान्वित इसलिए करती हैं क्योंकि आज के दौर में किसी नेता के प्रति आमजन का यह विश्वास कल्पनाओं से भी परे है। ज्यादातर प्रतिनिधि तो पहली नजर में नजरों से उतर जाते हैं। ऐसे में राणा की स्वीकार्यता निसंदेह ही गर्व कराती है।
अभी ताजा खबर है कि कुल्हाड़ जिला पंचायत से कांग्रेस समर्थित ने नाम वापस लेकर महेंद्र राणा की बाधा रहित विजय का रास्ता साफ कर दिया है। यह खबर आई तो सोशल मीडिया पर खुद को जन सेवक मानने वाले स्वयंभू खिसियाहट में खंभे नोचने लगे। वह इसे निहायत की पैसे का जोर बता रहे हैं। लेकिन आजकल पढ़ा लिखा समाज है, यह नहीं भूलना चाहिए कि पंचायती राजनीति में कई धन्ना सेठ टाइप के लोग पहले से ही भाग्य आजमाते रहे हैं। और यह सिलसिला आज भी अनवरत है। लेकिन गांव के मिजाज को पार करना उनके वश से बाहर रही रहा। उन्होंने पैसे की गरमी तो दिखाई लेकिन जनता का भरोसा नहीं जीत पाए। इसके उदाहरण देना मैं यहां जरूरी नहीं समझता लेकिन यह सर्व विदित है।
कुल्हाड़ सीट पर हुए राजनैतिक घटनाक्रम में पर यह त्वरित टिप्पणी सी है। महेंद्र राणा की जर्नी, उनके संघर्ष, और भविष्य की प्लांिनंग पर फिर बात करेंगे। तब तक के लिए नमस्कार।

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